SENGAR RAJPUT VANSH
SENGAR RAJPUT VANSH
Rajputana Soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास
सेंगर राजपूत वंश
सेंगर राजपूत वंश को 36 कुली सिंगार या क्षत्रियों के
36 कुल का आभूषण भी कहा जाता है, यह बंश न कवल
वीरता एवं जुझारूपन के लिए बल्कि सभ्यता और
सुसंस्कार के लिए भी विख्यात है.
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सेंगर राजपूतो का गोत्र,कुलदेवी इत्यादि
गोत्र-गौतम,
प्रवर तीन-गौतम ,वशिष्ठ,ब्रहास्पतय
वेद-यजुर्वेद ,शाखा वाजसनेयी, सूत्र पारस्कर
कुलदेवी -विंध्यवासिनी देवी
नदी-सेंगर नदी
गुरु-विश्वामित्र
ऋषि-श्रृंगी
ऋष्यशृंग या श्रृंगी ऋषि वाल्मीकि रामायण में एक पात्र हैं जिन्होंने राजा दशरथ के पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराये थे। वह विभाण्डक ऋषि के पुत्र तथा कश्यप ऋषि के पौत्र बताये जाते हैं।[1] उनके नाम को लेकर यह उल्लेख है कि उनके माथे पर सींग (संस्कृत में ऋंग) जैसा उभार होने की वजह से उनका यह नाम पड़ा था। उनका विवाह अंगदेश के राजा रोमपाद की दत्तक पुत्री शान्ता से सम्पन्न हुआ जो कि वास्तव में दशरथ की पुत्री थीं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋष्यशृंग विभाण्डक तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। विभाण्डक ने इतना कठोर तप किया कि देवतागण भयभीत हो गये और उनके तप को भंग करने के लिए उर्वशि को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया जिसके फलस्वरूप ऋष्यशृंग की उत्पत्ति हुयी। ऋष्यशृंग के माथे पर एक सींग (शृंग) था, अतः उनका यह नाम पड़ा। ऋष्यशृंग के पैदा होने के तुरन्त बाद उर्वशी का धरती का काम समाप्त हो गया तथा वह स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान कर गई। इस धोखे से विभाण्डक इतने आहत हुये कि उन्हें नारी जाति से घृणा हो गई तथा उन्होंने अपने पुत्र ऋष्यशृंग पर नारी का साया भी न पड़ने देने की ठान ली। इसी उद्देश्य से वह ऋष्यशृंग का पालन-पोषण एक अरण्य में करने लगे। वह अरण्य अंगदेश की सीमा से लग के था। उनके घोर तप तथा क्रोध के परिणाम अंगदेश को भुगतने पड़े जहाँ भयंकर अकाल छा गया। अंगराज रोमपाद (चित्ररथ) ने ऋषियों तथा मंत्रियों से मंत्रणा की तथा इस निष्कर्ष में पहुँचे कि यदि किसी भी तरह से ऋष्यशृंग को अंगदेश की धरती में ले आया जाता है तो उनकी यह विपदा दूर हो जायेगी। अतः राजा ने ऋष्यशृंग को रिझाने के लिए देवदासियों का सहारा लिया क्योंकि ऋष्यशृंग ने जन्म लेने के पश्चात् कभी नारी का अवलोकन नहीं किया था। और ऐसा ही हुआ भी। ऋष्यशृंग का अंगदेश में बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया गया। उनके पिता के क्रोध के भय से रोमपाद ने तुरन्त अपनी पुत्री शान्ता का हाथ ऋष्यशृंग को सौंप दिया।
बाद में ऋष्यशृंग ने दशरथ की पुत्र कामना के लिए अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया।[3] जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाये थे वह अयोध्या से लगभग ३८ कि॰मी॰ पूर्व में था और वहाँ आज भी उनका आश्रम है और उनकी तथा उनकी पत्नी की समाधियाँ हैं।[4]
ध्वजा -लाल
सेंगर राजपूत विजयादशमी को कटार पूजन करते हैं.
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सेंगर राजपूत वंश की उत्पत्ति(origin of sengar rajput)
इस क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति के विषय में कई मत
प्रचलित हैं,
1- ठाकुर ईश्वर सिंह मडाड द्वारा रचित राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 168,169 के अनुसार"इस वंश की उत्पत्ति के विषय में ब्रह्म पुराण में वर्णन आता है.चन्द्रवंशी राजा महामना के दुसरे पुत्र तितुक्षू ने पूर्वी भारत में अपना राज्य स्थापित किय,इस्नके वंशज प्रतापी राजा बलि हुए,इनके अंग,बंग,कलिंग आदि 5 पुत्र हुए जो बालेय कहलाते थे, राजा अंग ने अपने नाम से अंग देश बसाया,इनके वंशज दधिवाहन, दिविरथ,धर्मरथ, दशरथ(लोमपाद),कर्ण विकर्ण आदि हुए. विकर्ण के सौ पुत्र हुए जिन्होंने अपने राज्य का विस्तार गंगा यमुना के दक्षिण से लेकर चम्बल नदी तक किया.अंग देश के बाद इस वंश के नरेशो ने चेदी प्रदेश(डाहल प्रदेश), राढ़(कर्ण सुवर्ण),आंध्र प्रदेश (आंध्र नाम के शातकर्णी राजा ने स्थापित किया,इस वंश के प्रतापी राजा गौतमी पुत्र शातकर्णी थे),सौराष्ट्र,मालवा,आदि राज्य स्थापित किए, राड प्रदेश(वर्दमान)के सेंगर वंशी राजा सिंह के पुत्र
सिंहबाहु हुए,उनके पुत्र विजय ने सन 543 ईस्वी में समुद्र मार्ग से जाकर लंका विजय की और अपने पिता के
नाम पर वहां सिंहल राज्य स्थापित किया.सिंहल ही बाद में सीलोन कहा जाने लगा. विकर्ण के सौ पुत्र होने के कारण ही ये शातकर्णी कहलाते थे,शातकर्णी से ही धीरे धीरे ये सेंगरी,सिंगर,सेंगर कहलाने लगे.इस मत के अनुसार सेंगर चन्द्रवंशी क्षत्रिय हैं. यह बहुत ठोस तर्क है इस वंश की उत्पत्ति का,अब बाकि मत पर नजर डालते हैं,
2-एक अन्य मत के अनुसार भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता का विवाह श्रृंगी ऋषि से किया,प्राचीन काल में क्षत्रिय राजा के साथ साथ ज्ञानी ऋषि भी हुआ करते थे,श्रृंगी ऋषि की संतान से ही सेंगर वंश चला.इस मत के अनुसार यह ऋषि वंश है.
3-एक अन्य मत के अनुसार श्रृंगी ऋषि का विवाह कन्नौज के गहरवार राजा की पुत्री से हुआ,उसके
दो पुत्र हुए,एक ने अर्गल के गौतम वंश की नीव रखी और दुसरे पदम से सेंगर वंश चला,इस मत के अविष्कारक ने लिखा कि 135 पीढ़ियों तक सेंगर वंश पहले सीलोन (लंका) फिर मालवा होते हुए ग्यारहवी सदी में जालौन में कनार में स्थापित हुए. किन्तु यह मत बिलकुल गलत है,क्योंकि पहले तो अर्गल का गौतम वंश,सूर्यवंशी क्षत्रिय गौतम बुध का वंशज है और दूसरी बात कि कन्नौज में गहरवार वंश का शासन ही दसवी सदी के बाद शुरू हुआ तो उससे 135 पीढ़ी पहले वहां के गहरवार राजा की पुत्री से श्रृंगी ऋषि का विवाह होना असम्भव है.
4-एक मत के अनुसार यह वंश 36 कुल सिंगर या क्षत्रियों के 36 कुल का श्रृंगार(आभुषण ) भी कहलाता है,इसी से इस वंश का नाम बिगड़कर सेंगर हो गया.
5-उपरोक्त सभी मतों को देखते हुए एवं कुछ स्वतंत्र
अध्यन्न करने के बाद हमारा स्वयं का अनुमान----------मत संख्या 1 के अनुसार इस वंश के पुरखों ने पूर्वी भारत में अंग,बंग(बंगाल) आदि राज्यों की स्थापना की थी,इन्ही की शाखा ने आंध्र कर्नाटका क्षेत्र में आन्ध्र शातकर्णी वंश की स्थापना की,इसी वंश में गौतमी पुत्र शातकर्णी जैसा विजेता हुआ,जिसने अपने राज्य की सीमाएं दक्षिण भारत से लेकर उत्तर,पश्चिम भारत,पूर्वी भारत तक फैलाई.उसके बारे में लिखा है कि उसके घोड़ो ने तीन समुद्रों का पानी पिया, गौतमी पुत्र की बंगाल विजय के बाद उसके कुछ वंशगण यहीं रह गये,जो सेन वंशी क्षत्रिय कहलाते थे,सेन वंशी क्षत्रिय को ब्रह्मक्षत्रिय(ऋषिवंश) या कर्नाट क्षत्रिय(दक्षिण आन्ध्र कर्नाटक से आने के कारण) भी कहा जाता था.पश्चिम बंगाल का एक नाम गौर (गौड़)क्षत्रियों के नाम पर गौड़ देश भी था,पाल वंश के बाद बंगाल में सेन वंश का शासन स्थापित हुआ, गौर देश (बंगाल) पर शासन करने के कारण सेन वंशी क्षत्रिय सेनगौर या सेनगर या सेंगर कहलाने लगे.(बंगाल में आज भी सिंगूर नाम की प्रसिद्ध जगह
है).कालान्तर में इस वंश के जो शासक चेदी प्रदेश,मालवा,जालौन,कनार आदि स्थानों पर शासन कर रहे थे वो भी सेंगर वंश के नाम से विख्यात हुए, इस प्रकार हमारे मत के अनुसार यह वंश चंद्रवंशी है और इस वंश के शासको के विद्वान और ब्रह्मज्ञानी होने के कारण इसे ब्रह्म क्षत्रिय(ऋषि वंशी) भी कहा जाता है,
श्रीलंका में सिंहल वंश की स्थापना भी सन 543 ईस्वी में सेंगर वंशी क्षत्रियों ने की थी,चित्तौड के राणा रत्न सिंह की प्रसिद्ध रानी पदमिनी सिंहल दीप की राजकुमारी थी जो संभवत इसी वंश की थी, आंध्र सातवाहन शातकर्णी वंश के गौतमी पुत्र शातकर्णी भी इसी वंश के थे जिन्होने पुरे भारत पर अपना आधिपत्य जमाया.
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सेंगर वंशी क्षत्रियों के राज्य
उपर हम बता ही चुके हैं कि प्राचीन काल में सेंगर क्षत्रियों का शासन अंग, बंग,आंध्र,राढ़, सिंहल दीप
आदि पर रहा है,अब हम मध्य काल में सेंगर क्षत्रियों के राज्यों पर जानकारी देंगे.
1-चेदी अथवा डाहल प्रदेश
सेंगर क्षत्रियों का सबसे स्थाई और बड़ा शासन चेदी प्रदेश पर रहा है,यहाँ का सेंगर वंशी राजा डाहल
देव था जो महात्मा बुद्ध के समकालीन थे,इन्ही डहरिया या डाहलिया कहलाते हैं जो सेंगर वंश की शाखा हैं,बाद में इनके प्रदेश पर चंदेल व कलचुरी वंशो ने अधिकार कर लिया,
2--कर्णवती
जब सेंगर राज्य बहुत छोटा रह गया तो राजा कर्णदेव सेंगर ने यह राज्य अपने पुत्र वनमाली देव को देकर
यमुना और चर्मन्व्ती के संगम पर कर्णवती राज्य स्थापित किया आजकल यह क्षेत्र रीवा राज्य के अंतर्गत आता है.
3-कनार राज्य
जालौन में राजा विसुख देव ने कनार राज्य स्थापित किया,उनका विवाह कन्नौज के गहरवार राजा की पुत्री देवकाली से हुआ.जिसके नाम पर उन्होंने देवकली नगर बसाया,उन्होंने बसीन्द नदी का नाम बदलकर अपने वंश के नाम पर सेंगर नदी रख दियाजो आज भी मैनपुरी,इटावा,कानपुर जिले से हो कर बह रही है.बिसुख देव के वंशधर जगमनशाह ने बाबर का सामना किया था,कनार राज्य नष्ट होने पर जगमनशाह ने जालौन में ही जगमनपुर राज्य की नीव रखी,आज भी इस वंश के राजपूत जगमनपुर,कनार के आस पास 57 गाँवो में रहते हैं और कनारधनी कहलाते हैं,
सेंगर राजपूतो के अन्य राज्य
सेंगर वंश का शासन मालवा की सिरोज राज्य पर भी रहा है,सेंगर वंश के रेलिचंद्र्देव ने इटावा में भरेह
राज्य स्थापित किया, 13 वी सदी में इस वंश के फफूंद के कुछ सेंगर राजपूतो ने बलिया जिले के लाखेनसर में राज्य स्थापित किया जो 18 वी सदी तक चला,लाखेनसर के सेंगर राजपूतो ने बनारस के भूमिहार राजा बलवंत सिंह और अंग्रेजो का डटकर सामना किया, इस वंश की रियासते एवं ठिकानो में जगमनपुर (जालौन),भरेह(इटावा),रुरु और भीखरा के राजा,नकौता के राव एवं कुर्सी के रावत प्रसिद्ध हैं.
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सेंगर वंश की शाखाएँ एवं वर्तमान निवास स्थान
सेंगर राजपूतो की प्रमुख शाखाएँ चुटू,कदम्ब,बरहि या(बिहार,बंगाल,असम आदि में),डाहलिया,दा
हारिया आदि हैं. सेंगर राजपूत आज बड़ी संख्या में मध्य प्रदेश,यूपी के जालौन, अलीगढ, फतेहपुर,कानपूर वाराणसी,बलिया,इटावा,मैनपुरी,बिहार के छपरा,पूर्णिया आदि जिलो में मिलते हैं.तथा राजनीति,शिक्षा,नौकरी,कृषि,व्यापार के मामले में इनका अपने इलाको में बहुत वर्चस्व है.
सेंगर एक भारतीय उप-जाति या गोत्र समुदाय है जो राजपूत वंश के अंतर्गत आता है। [१] वर्तमान में, इस समुदाय के लोग मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के इटावा जिले और आसपास के क्षेत्रों में निवास करते हैं जहाँ उनके नाम के बाद संगर नदी है; दूसरा प्रमुख क्षेत्र उत्तर प्रदेश का बलिया जिला और उसके आस-पास के जिले और आसपास के बिहार क्षेत्र हैं जहाँ उनके स्थान को लखनासर कहा जाता था। [२] सेंगर वंश को इटावा क्षेत्र में राजपूत आबादी बसाने का श्रेय दिया जाता है। [३] उनके यहाँ विदुना तहसील में एक बड़ी आबादी है। [४] बलिया जिले के अलावा, उनकी आबादी मुख्यतः आसपास के जिलों, मऊ आजमगढ़ आदि में है। [५]
सेंगर नमोत्पति के बारे में एक मान्यता के अनुसार, वे राम की बहन शांता और शृंग ऋषि के वंशज माने जाते हैं, जिन्हें श्रृंगवंशी कहा जाता है। [६] जबकि, दूसरों के अनुसार, वे चंद्र राजा विकर्ण के वंशज हैं जिन्हें शातकर्णी कहा जाता था और इसी से सेंगर शब्द की उत्पत्ति हुई।
Sengar history Found in this book for more details Book
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Sources :
1-ब्रह्मपुराण
2-राजपूत वंशावली ठाकुर ईश्वर सिंह मडाड प्रष्ठ
संख्या 168 से 170
3-annals and antiques of rajputana by col james
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